जहाँ बोलती
खामोशी, चुप सी रहतीं सांसें,
जहाँ घाव तन्हाई,चुभन बिखरती सी आसें,
जहाँ ताले बन्द
थे दिल, खुली नफरतों की बारिसें ,
वहाँ नजरबंद
कातिल वफा के,अब कैसी
सिफारिशें ,
फिकर ना कर,
उलझनें बढ रहीं
तो क्या, मुझे सुलझाना आता है,
न मलाल कर मेरी
खुशियों का, दिल बहलाना आता
है !
जहां उगे कांटे
वहाँ,बेर भी होते हैं,
जहां जंगल
सन्नाटा ,वहाँ शेर भी होते हैं ,
जहां कंगाली मानक
,वहाँ कुबेर भी होते हैं,
जहाँ बदनामी हर
पहर,वहाँ नाम देर सबेर ही
होते हैं,
फिर गिराने को,
यूँ विष का
अनुसरण ना कर, मुझे चाय बनाना
आता है,
न मलाल कर मेरी खुशियों का, दिल बहलाना आता है !
काम की तबीयत
नहीं कि वो बदनाम हो जाए,
नियत नहीं ,जरूरत है ,नाम एक शाम हो जाए ,
ये सुर्खियों में रहने का शौक तुम ने पाला होगा,
दो चार ही सही,
हस के बस दो पहर राम-2 हो जाये !
और हां,
तारीफ कम कर
दरवाजों की, मुझे महल बनाना
आता है,
न मलाल कर मेरी
खुशियों का, दिल बहलाना आता
है !
और अंत में,
जल्दी ना कर मुंह
फेरने की आज,मुझे कल बनाना
आता है,
माखौल ना उडा
खामोशी का, मुझे माहौल बनाना आता है,
पहले से ही जल
रहे, तू ना जल, कम बारिश बिछाना आता है,
तेरे धक्के की
बारी ना आयेगी ,मुझे बल लगाना
आता है,
न मलाल कर मेरी
खुशियों का, दिल बहलाना आता
है !
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