जगन्नाथ चाचा बोल रहे थे की ,“पुराने जमाने में जब देश में हिंदुत्व था। तब देश का एक भाग तक्षशिला जो आजकल पाकिस्तान में है ,शिक्षा का मुख्य केंद्र था, फिर वक्त के साथ-साथ भगवान बुद्ध, भगवान महावीर हुए। उनके सिद्धांतों से बौद्ध धर्म और जैन धर्म बना। बाद में इस्लामिक साम्राज्य आया और देश में इस्लामिक शिक्षा का प्रचार प्रसार हुआ। अंत में यूरोपियन ब्रिटिश आए जो वेस्टर्न कल्चर के नाम से या अंग्रेजी शिक्षा के नाम से भारत में अपनी अंग्रेजी शिक्षा का प्रचार किया। अंग्रेजी शिक्षा की शुरुआत फरवरी १८३५ में मेकुले द्वारा की गई थी। तभी शायद हर चीज का मैनुअल अक्सर अंग्रेजी में होता है।
ज्ञान वह है, जो हम को अपनी मंजिल का पता बताता है। या यूँ कहैं की हीरा है,जिसे हम बाँट नहीं सकते बस तराश सकते है। अपने पूर्वजों के ज्ञान से , या अपने अनुभव से। शिक्षा दो प्रकार से ग्रहण की जाती है -एक प्रैक्टिकल और दूसरा थ्योरी से। कहीं-कहीं पर दोनों का ही उपयोग होता है बराबर से। लेकिन हमारे देश में सबसे ज्यादा थ्योरी ही पढ़ाई जाती है प्रैक्टिकल तो सिर्फ नाम के ही होते है। शायद यही वजह तो नहीं कि इसी कारण हमारे देश में बहुत कम अविष्कार होते है लेकिन बातें बहुत होती हैं।
मेरी माने तो अगर हमें अपनी शिक्षा को अच्छे से पहुंचाना है और अच्छे रिजल्ट पाना है तो थ्योरी और प्रैक्टिकल में सामंजस्य होना जरूरी है। आजकल शिक्षा का स्तर सिर्फ थ्योरी तक ही सीमित हो गया है। अगर हम चाहते हैं हमें शिक्षा से कुछ हासिल हो जाए। तो ये सिर्फ थ्योरी के साथ थोड़ा मुश्किल ही लगता है। क्योंकि आग के जलने की गर्मी को पढ़कर महसूस नहीं कर सकते हैं। वह तो खुद से जला कर ही पता लगा सकते हैं कि आग की गर्मी या तपन क्या चीज होती है। बिना प्रैक्टिकल की
शिक्षा के हम वो इंसान बनते जा रहे हैं जिसे सिर्फ बोलना आता है,करना कुछ नहीं। क्योकि किसी ने सिखाया ही नहीं।"
यह सब बोलते हुए जगन्नाथ चाचा अपने घर की ओर चलने लगे, उनके जाने के कुछ समय तक मैं वहीं चौपाल पर ही बैठा रहा। कुछ देर बाद अपनी जेब से मोबाइल निकाला और मोबाइल में समय देखकर वापस जेब में रख लिया ,और मैं भी घर की तरफ चलने लग गया,थोड़ी दूर जाकर ही फिर से मोबाइल बहार निकाल लिया ,मगर इस बार रस्ते में रोशनी की खातिर।
मैं सोच रहा था कि चाचा की बात में तो दम लग रहा है।
घर जाते वक्त यह सारी बातें मेरे दिल और दिमाग में घूम रही थी
घर पहुंचते ही,दरवाजे पर खड़ी खूबसूरत औरत ,जो मेरी पत्नी है मुस्कुराते हुए बोली ,"आज कोई चुटकुला सुनाओ तभी अंदर जाने दूंगी घर में।"
"अजीब बात करती हो। यह क्या बात है। चुटकुला हो गया कि कोई पासवर्ड, देना ही पड़ेगा।"
"सुना है बहुत बातें बनाते हो तुम और चाचा एक साथ। बातें ही करते रहना। करना तो है नहीं जिंदगी में कुछ। "
"अरे ऐसी बात नहीं है ,चाचा बड़ी काम की बात बता रहे थे। वह कुछ प्रैक्टिकल थ्योरी। रिटायरमेंट हो गए , मगर ज्ञान देने का कीड़ा मरा नहीं चाचा का। "
"अच्छा जी। "
"अच्छा ये बताओ ,तुमको किसने बताया मेरे बारे में। "
“क्या करना तुमको इससे ! रामफल ताऊ ने बताया था, दूध देने आये थे जब ।”
“रामफल ! रामफल ताऊ पर चुगली का ही काम है क्या !”
“ नहीं ! दूध भी बांटते हैं !”
“अच्छा ! तुमको बहुत पता है !”
“ हम ओरतें भी आजकल न्यूज़ देखती हैं ।”
“बढ़िया है ! तो क्या रामफल ताऊ न्यूज़ पर आता है !”
“अरे ! छोडो भी ! एक बात के पीछे ही पड गये तुम तो ! और आजकल अकेले-अकेले ही प्लान बना लेते हो,उसका क्या ! हमरी राय भी नहीं लेते हो ।”
“अपनी राय छोड़ो ! पहले चाय पिलाओ !”
“चाय तो पिलाउंगी ,लेकिन ये प्रेक्टिकल-थ्योरी क्या लगा रखा है !”
“ वो छोडो ! ये तुमारी समझ के बाहर है।”
“अच्छा जी ! एक तुम ही तो पूरे गाँव में कलेक्टर !”
“कोई शक है क्या !वो तो हैं ही हम।”
वो चाय बनाने चली जाती है और मैं अपने हाथ पैर धोने चला जाता हूँ ।और वो थोड़ी ही देर में दो चाय के कप हाथ में लिए बाथरूम के बाहर ही खड़ी मिलती है ,मानो चाय पहले से ही बना रखी हो।चाय पीने के बाद ये पक्का भी हो जाता है ।
बक्त सोने का हो चला था ,लेकिन मुझे नींद नहीं आ रही थी । दिल मे बार-बार खयाल आ रहे थे की
जगन्नाथ चाचा की बात को आगे कैसे बढाया जाये। कैसे लोगों को समझाया जाये की प्रक्टिकल और थ्योरी दोनों का होना बहोत्त जरुरी है अगर किसी भी क्षेत्र में कामयाबी पानी है ।इन विचारों के बीच पत्नी की आवाज आती है ,
“ सोना नहीं है क्या ! अगर रोजाना का यही काम है तो तुम अलग सो जाया करो !”
“ अलग क्यों !”
“ और नहीं तो क्या ! पिछले एक साल से तुमको ये ख्याल तो है नहीं की ,कोई तुमारे बगल में कब सोता है कब उठ जाता है !”
“क्या तुमरे उठने –जागने का हिसाब रखूं क्या !”
“ ना ! मेरा क्यूँ हिसाब रखोगे !जो मतलब था वो तो निकल गया ।”
“अच्छा ! तुमने ऐसा क्या दे दिया ,जो मेरा मतलब निकल गया !आज तक सिर्फ ताने ही दिये हैं !”
“ उसे ताने नहीं कहते ,समझाना कहते है ! लेकिन वो क्या समझेगा जिसका दिल ही नहीं धडकता मेरे लिए !”
“किसने कहा !प्यार नहीं है तुमारे लिए !बस अभी थोडा सा व्यस्त हूँ इस प्रैक्टिकल-थ्योरी को समझने में।”
“हाँ-हाँ ठीक है ! मुझे सोने दो और जगाना मत ! सोचते रहो जो सोचना है !”
“ सो जाओ ना ! मैंने कब कहा की जगराता करना है !”
“तुम करवा भी नहीं सकते !”
कुछ देर ऐसे ही बहस के बाद मुझे नींद आ जाती है और मैं सो जाता हूँ।सुबह हो चुकी है ।मेरी पत्नी दिख नहीं रही है ।उसे आवाज लगाने की सोचता हूँ की तबी वो किचन से चाय लेते हुए दिख जाती है ।
मैं चाय पीकर अपने बेड से उठकर बाथरूम की तरफ बढ़ जाता हूँ । सुबह की क्रिया के बाद मैं जैसे ही हाथ धोने के लिए अपना हाथ साबुन की तरफ बढाता हूँ तो साबुन की जगह कुछ सफ़ेद कागज सा हाथ में आता । मैं उसके बगल में रखे साबुन को उठा लेता हूँ और हाथ धोते-धोते उस कागज को ही देखता रहता हूँ ।उस कागज को देख कर सोच रहा हूँ की कहीं बिजली का बिल या फिर मेरे कपड़ो से निकला फालतू सी हिसाब की पर्ची तो नहीं । मैं बाहर आते बक्त उसे अपने साथ ले आता हूँ और अपने हाथ साफ़ करने के बाद खोल कर देखता हूँ तो लिखावट जानी पहचानी सी लगती है ,थोडा सा पढने के बाद पक्का भी हो जाता है कि ये तो मेरी पत्नी ने लिखा है ,और आधा ही पेज में लिखा है ,कुछ इस तरह से -
“ मेरे प्रिय पति , अगर ऐसे ही चलता रहेगा हम दोनों के बीच में तो बाकी की जिंदगी साथ जीने में तकलीफें बढती ही जायेंगी ।अगर सीधी बात कहूँ तो तुम कोई शिक्षा मंत्री तो हो नहीं जो तुम ऐसा कर दोगे कि वैसा कर दोगे ।मेरी समझ में नहीं आता ये जो तुम पिछले साल से कह रहे हो की प्रैक्टिकल –थ्योरी पर किताब लिखूंगा और शिक्षा में सुधार करूँगा । मैं तुमसे कम पढी हूँ ,इसका मतलब ये नहीं की तुम मुझे कम प्यार करोगे या फिर करोगे तो एक –आध साल में एक बार या वो भी नहीं ।
कल रात मैंने तुमारी डिक्शनरी में प्रैक्टिकल-थ्योरी का मतलब ढूंढा था । तुमको पता होना चाहिए की हिंदी में प्रैक्टिकल –थ्योरी का अर्थ व्यावहारिक सिद्धांत है। मतलब अगर तुम मेरे साथ सिर्फ प्यार की बातें ही करते हो ,तुमारी भाषा में कहूँ तो थ्योरी ही पढते हो ,लेकिन प्रैक्टिकल की तरफ कभी नहीं बढ़ते हो । इसीलिए मुझे लगता है तुमको प्रैक्टिकल सिर्फ किताबों या प्रयोगशालाओं में ही नहीं ढूढना है बल्कि अपने व्यवहार और सिद्धांतों को सही करना है ।और प्रैक्टिकल घर में भी करना है ।”
ये सब पढ़ कर मैं समझ नहीं पा रहा था की अपनी पत्नी को क्या कहूँ ।
“वाह ! तुमने तो मेरी आंखें खोल दी मैं सोच रहा था कहां से शुरुआत करूं ।”
“अब मैं शुरुआत अपने घर से ही करूंगा पहले तुमसे प्यार करके , अब सिर्फ बातें ही बातें नहीं करूंगा !इजहार भी करूंगा ! और हाँ आज से अपने मां-बाप के ख्याल सिर्फ ख्वाबों में नहीं , अपने हाथों से उनको खाना खिलाऊंगा । अपने साथ घुमाऊंगा ।
अपने हाथों से उनकी जरुरत का सामान लाऊंगा ।
वो बूढ़े नहीं हुए तो क्या हुआ ,में अपना फर्ज अभी से निभाऊंगा ।”
ये सब कहने के बाद मेरा मन हुआ की दुनिया को भी बताऊँ ,कि हमको सिर्फ गरीबी के बारे में सिर्फ बातें ही बातें नहीं ,उनका सम्मान करना और उनकी सहायता करना शुरु करना पडेगा । और अब सिर्फ सफाई की बातें ही नहीं खुद घर से निकल कर एक दंगा (प्रैक्टिकल ) करना होगा । हर तरफ आग लगानी होगी जहाँ भी कचरा दिखे या फिर उसको ठिकाने लगाना होगा । हाँ हमको प्रैक्टिकल करना होगा ।
आज समझ लो कि प्रेक्टिकल-थ्योरी हमारे जीवन में हर तरह से बहुत महत्वपूर्ण है जिसको व्यवहारिक सिद्धांत भी कह सकते हैं । अपना व्यवहार बदलना पडेगा ,तभी कुछ होगा वर्ना हमारे बच्चे पूछेंगे कि आपने सिर्फ सफाई की थ्योरी ही सिखाई है,काश प्रैक्टिकल भी सिखा देते ।
थ्योरी पढ़ पढ़ कर ही काम नहीं चलेगा अब हमें प्रैक्टिकल करना भी होगा । क्योंकि जो हमको पढ़ाया गया है वह हमें कुछ ना कुछ करने के लिए ही पढ़ाया गया है ना कि सिर्फ लिखने के लिए बल्कि कुछ बनने के लिए ,कुछ करने के लिए । जितनी भी शिक्षा आपने ग्रहण की है या कोई अनुभव है जो भी आपको आता है । तो आप उसको अपने जीवन में उतारें । उसी के अनुसार कुछ ना कुछ ऐसा प्रैक्टिकल करें जिससे कि देश का भला हो, शहर का भला हो ,समाज का भला हो और आने वाली पीढ़ी का भला हो ,आपका भी भला हो, सब का
भला हो ।
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